Saturday, January 24, 2009

ऐ जिंदगी ना ढूंढना मुझे अब के बार

I am starting my first blog here with one of my poem(most favorite)

ऐ जिंदगी ना ढूंढना मुझे अब के बार
ग़र ये बेरहम खेल दोबारा होगा

ना कोई मेरी आंखों का तारा होगा
ना किसी की जुबां पे नाम हमारा होगा

दिल में धड़कन ही ना रहेगी
ना इसमे किसी का बसना हमे गँवारा होगा

डूब जायेगी कश्ती हमारी मजधार में
किनारे का हमे ना कोई सहारा होगा

ऐ जिंदगी ना ढूँढना मुझे अब के बार
ग़र ये बेरहम खेल दोबारा होगा

छोड़ जाऊंगा एक निशाँ इस जमाने में अपनी
खिजां में उजड़ा हुआ बहार ही बस हमारा होगा

सो जाऊंगा इन वादियों में मैं कहीं
की तेरी यादों के सहारे ना मेरा गुजारा होगा

ग़र थाम ना पायी ये हाथे तेरे हाथों को
इन बेजान हाथों का फिर जलना ही इरादा होगा

खो जायेगी मेरी हस्ती रात के साये में ही
सुबह का उगता हुआ सुरज तेरे लिए ही दोबारा होगा

ऐ जिंदगी ना ढूँढना मुझे अब के बार
ग़र ये बेरहम खेल दोबारा होगा

ग़र आए मेरी याद आंखों में आँसू बन के
समझ लेना मैंने तुम्हे दिल से दिल से पुकारा होगा

ना बैठना मेरी आस में इन किनारों पर कभी
उस किनारे इंतजार मुझे तुम्हारा होगा

ग़र मांगनी हो ख्वाहिशें उस खुदा से
हसरतों को हकीकत करने का ज़ज्बा हो दिल से

देखना आसमां में बिखरे उन सितारों की ओर
वो टूटता हुआ तारा ही हमारी शख्सियत हमारा नज़ाराहोगा
ऐ जिंदगी ना ढूँढना मुझे अब के बारगर ये बेरहम खेल दोबारा होगा