Thursday, April 8, 2010

इंसान हूँ मैं??????????

इंसान हूँ मैं या उस कवि की रचना का मूल हूँ मैं?
एक रहस्य, एक प्रश्न या फिर एक अनसुलझी पहेली हूँ मैं?
हास-परिहास व्यंग्य या फिर निराशा का प्रतीक हूँ मैं?
क्या उस वीणा की टूटी हुई तारों की तकदीर हूँ मैं?
इंसान हूँ मैं या उस कवि की रचना का मूल हूँ मैं?
ना जाने कितनी पढ़ा समझा और टटोला गया
कितनी आंखों से आंसू गिरे, कितनो को पोंछा गया
सदियाँ बीत गई फिर भी खड़ा रहा मैं वहीँ पर
समेटकर अपने अंदर दर्द और ग़मों की लकीर को मैं
इंसान हूँ मैं या उस कवि की रचना का मूल हूँ मैं?
देखा है अनगिनत हस्तियों को उठते, उठकर गिरते हुए
देखा है क्रोध द्वेष की ज्वाला में जिंदगियां जलते हुए
भाई-भाई को ही लड़ते और घरों में सरहदें पड़ते हुए
प्यार के धागों को तोड़ मोतियों को बिखरते हुए
सोंचा मैंने ख़ुद पर, कौन हूँ मैं कैसी अनसुनी गीत हूँ मैं?
इंसान हूँ मैं या उस कवि की रचना का मूल हूँ मैं??

4 comments:

  1. यह कविता जो मैंने लिखी है अभी भी अधूरी है, मुझे यह नही पता की इसे किस तरह इसके मुकाम तक पहूचाऊं.
    इस कविता में मानवता यह प्रश्न कर रही है की आखिर मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ जो सदियों तक अविचल रहा यहीं पर जबकि मौसम आए रुत आई और आकर चली गई, अनगिनत हस्तियाँ आई और ख़ाक में मिल गई, सब कुछ ख़त्म हो गया, पर मैं आज भी वहीँ पर खड़ा हूँ, ना जाने किसके इन्तजार में, कितने दर्द को समेटने के लिए?
    आज मेरे आंखों में आँसू नही है जो कल बहा करती थी, आज मेरे हाँथ नही कांपते जो कल कांपती थी अपने ही ज़नाजे को कन्धा देने में.

    ReplyDelete
  2. मानवता यह प्रश्न कर रही है उनसे जिन्होंने सब को रचा और जिन्होंने पवित्र रिश्ते को तराशा- मानवता
    यह पूछ रही है उस कवि से की आपने तो एक सुंदर सी कविता की रचना की थी जिनके शब्द प्यार के उन् सात रंगों से रचे गए थे. कहाँ गए वे रंग? आज वे रंग मुझे खून की तरह लाल क्यों दिख रहे हैं? और आपकी इस कविता का चेहरा कैसे बदल गया जो कभी सुन्दरता की मूरत थी आज वह इतनी बदसूरत क्यों दिख रही है?
    आप खामोश क्यों हैं? क्या आप नही देख रहे हैं अपनी रचना का भविष्य?क्या आप नही देख रहे हैं मुझे जिसे आपने अपनी कविता का कभी मूल बताया था?
    आज भी मैं आपकी कविता का मूल हूँ, पर फर्क बस इतना है आज मैं मूक भी हूँ.

    ReplyDelete
  3. सदियाँ बीत गई फिर भी खड़ा रहा मैं वहीँ पर...
    कई अनसुलझे से सवालों के घेरे में...

    काफी अच्छा लगा यह सवाल अब भी जवाब से अनछुआ सा है....
    और न जाने कब तक यूँ ही चलता रहेगा...
    जवाब मिले तो कृपा हम पर भी करना...

    ReplyDelete
  4. tumhari ye kavita sochne pe majboor karti hain..... sarahniya prayas.... very good...keep penning more

    ReplyDelete