Friday, May 7, 2010

इन्तजार

हर वक़्त बस तेरा इन्तजार था मुझको
तु आयेगी एक दिन ये एहसास था मुझको
बस बैठा रहा तेरी राहों में मैं ये सोंचकर
कि मेरी नब्ज की उठती लहरों का आगाज था तुझको

चाहा था मैं तुझको अपना खुदा जानकर
कि फ़ना कर दिया खुद को मैंने प्यार में तेरे
तेरे हर लब्ज को तराशा मैंने आयतों कि तरह
कि बना दिया काफिर खुद को खुदाई में मैंने

उस मंजर में भी मुझको इन्तजार था बस तेरा
आयेगी तु और थामेगी अपने हाँथ में हांथों को मेरा
ख्वाहिश थी उस पल करूँ बस दीदार तेरी आँखों का
पर छोड़ दिया था दिल कि धड़कन ने साथ अब मेरा

आज भी गुजरता हूँ तेरे कूंचों से मैं हर वक़्त
तुझको छुते हवा के ये झोंके अब पहचान है मेरी
रहे ये मुस्कान सदा यूही तेरे होंठों पर
कि तेरी आँखों कि नमी उड़ना अब शान है मेरी

2 comments:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

    ReplyDelete